Friday, July 27, 2007

तुम्हारी आंखों में

कभी चमकती हैं सम्भावनाओं से , सफ़लता से, प्रसन्नता से,
प्रियजनों से मिलकर
या जब पहली बार खुद से “bubbles” बनाया
अनगिनत प्रश्न भी दिखते हैं…।
सूरज क्यों रोज निकलता है…
पृथ्वी का अपनी धुरी चक्कर क्यों लगाती है? आज ठंड क्यों है?
अश्रुपुर्ण होती हैं कभी दुख से या फिर घडियाली आंसू होते हैं…।
खाने में मिर्च थी,
पार्क् से घर जाने का समय हो गया है…
और अभी सोने का मन नही है
क्रोध तो क्या कहना…
अक्सर एक “fruit leather (अमावट या आम- पापड) ” से शान्त हो जाता है…।
क्रोध और विवशता में बडी ही बारीक सीमा रेखा होती है।
निराशा भी दिखती है जब “ice-cream में coffee ”होती है और कहते हो “just ice-cream, no coffee”
और भी बहुत सारे भाव दिखते हैं …
तुम्हारी आंखों में
मेरे जीवन की तुम सम्भावना हो
याद दिलाते हो की निरनतर प्रयासरत रहना ही
मानव का कर्म है…।
मानव का धर्म है…।

3 comments:

dpkraj said...

आपकी कवितायेँ बहुत भावपूर्ण हैं-दीपक भारतदीप

tejas said...

Thank you Deepak jii. Your comments are encouraging...

Vikram Pratap Singh said...

दीपक जी आपकी कविताए पड़ी यक़ीनन उम्दा हैं मैं साहित्य प्रेमी हू और कवितायों का का भी एसए ही लिखते रहे आप को साधुवाद