Friday, July 20, 2007

सत्तू और बुकनी…।

मेरे शहर में कयी पुराने नीम और पीपल के पेड थे…।हर साल के तूफ़ान में एक-एक करके गिर जाते हैं। पहलेए school के बाहर, काला चूरन ठेले पर बिकता था … साथ में कैथा और अमरक्…mummy कहती थी कि काला चुरन सेहत के लिये अच्छा नही है…।school में जामुन और इमली का पेड होता था…। school के एक कोने में एक पुराना सुखा कुआ था…।कभी किसी के उसमें गिरने का समाचार नही मिला था…नाश्ते में अक्सर लाई – चना मिलता था…।कभी – कभी सीताराम या फिर गुप्ता जी की चाट खाने को मिलती थी…। शिवकुटी के मेले में अनरसा मिलता था…। school में बाथरूम नही होता था। पानी के लिये बडी कतार लगती थी अक्सर पानी आता ही नही था…
नानी हर गुडिया के मेले में हरी चूडियां दिलाती थी। अक्सर लोग dinner या lunch पर नही आते थे, बल्की पुरे दिन के लिये आपके घर पर होते थे। मा सबके लिये खाना बनाती थी, फिर नाश्ता, फिर और आवभगत्…।
पहले लोग आराम से पापा की तन्ख्वाह पूछते थे…।मा से पूछ्ते थे कि दो बच्चों के बाद आब तीसरा क्यों नही…बडे आराम से लोग आपको बता देते थे की आप को क्या करना चाहिये…किसी भी समस्या का सबके पास समाधान भी होता था……
ऐसा नही है कि अब सब अच्छा नही है…अभी भी सब सुन्दर है…बस आज पुराने दिन याद आ गये

1 comment:

काकेश said...

अच्छे हैं आपके पुराने दिन भी.