Friday, August 17, 2007

तुम्हें मेरा आशीर्वाद!

नही जोडना था अपना नाम तुम्हारे साथ
अब ये न पूछो कि कौन किसके योग्य न था
इससे योग्यता का कुछ लेना देना नही है
मेरे तुम्हारे सम्बन्धों में, पात्रता का क्या स्थान?
फिर पात्रता की परिभाषा क्या होगी?
सो तुम्हें मेरा आशीर्वाद!
जहां रहो, प्रसन्न और यशस्वी हो
अगर मेरी याद आये तो, ये भी याद रखना कि
सन्कल्प का शुभ और कुलीन होना अति आवश्यक है
और मुझे क्षमा कर देना
इस लिये नही कि मुझे मुक्ति चाहिये
बल्कि इसलिये कि तुम्हारी क्षमा तुम्हें मुक्त कर देगी

Tuesday, August 7, 2007

तुम्हें थोडी अपनी धूप कम करनी होगी। करोगे?

ओ सूरज!
कहां हो भाई? घर आओ तो
रोशनी हो जाये …
अगर चाहो तो
चाय पर चांद को भी बुला लेंगे
घर के पास जो नदी बहती है
उसे भी आवाज देकर गप्पें लगाने को रोक लेंगे।
लगे हाथ वो पौधों को पानी दे देगी
मेरी छोटी चिडिया को भी लेकर बैठेंगे
उसके छोटे गीत और छोटे खेल
छोटी चिडिया, और पक्षियों को भी बुला लेगी
पर सूरज भाई!
तुम्हें थोडी अपनी धूप कम करनी होगी। करोगे?
जन शाम हो जाये,
तुम घर में मशाल बन एक किनारे रहना
धीरे-धीरे सुलगते रहना और
प्रकाश और प्रेरणा बांटने को
करोगे?
रहने दो! तुम अगर मशाल का काम करोगे तो
तुम्हारा काम कौन करेगा?
तुम अपना और मशाल दोनों का काम
करोगे?