Friday, June 29, 2007

कहीं एक तारा टूटा और यहां तक आवाज़ आयी…
तभी मैं नींद से जागी…
देखा तो आसमान में कोई हलचल नही थी
मै समझ नही पा रही थी कि ये आवाज़ कहां से आयी
गला सूख गया था सो पानी पीने रसोयी तक गयी
देखा तो एक कोने में मेरी आत्मा फ़ूट-फ़ूट कर रो रही थी
मै थोढा सकते में आ गयी…
क्योंकि मेरी आत्मा प्रदूशन, अराजकता, शोशण और गरीबी के लिये नही रोती
फिर कल आफ़िस भी जाना है…
मैने पूछा “क्या हो गया?”
तो सिसकियों बीच मुझे येह समझ आया कि मैडम दुखी हैं क्योंकी
उसके पास एक सच था जो वोह किसी से नही कह सकती थी
उस सच के बोझ तले मेरी आत्मा बहुत कष्ट में थी
मैने उसे कहा कि अभी रात है और सब सो रहे हैं …मन की बात कह कर मन हल्का कर लो
कहने लगी कि वो मुझे कुछ नही बतायेगी
मैने कहा कि माता पिता को फोन लगा लो
तो पता चला कि आब मेरी आत्मा बडी हो गयी है और सबको परेशान नही करना चाहती
अच्छा पति से बात कर लो…।
तो उसने बाहर को इशारा किया…कोई और उदास खडा था

3 comments:

Pratik Pandey said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है। ऑनलाइन हिन्दी किताबों पर मैंने दो पोस्ट्स लिखी थीं -
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2. ऑनलाइन हिन्दी साहित्य

काकेश said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत. आप अच्छा लिखते हैं.बस नियमित लिखते रहें.

tejas said...

काकेश ज़ी,
हौसला बडाने के लिये बहुत धन्यवाद्। आप मेरा लिखा पडते भी रहियेगा